तुम्हें ढूंढकर भी हम पा ना पाए
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तुम्हें भूलाने के लिए
हमने कितने काम किए ।
लेकिन भूलाने की जगह
सिर्फ अपना समय बर्बाद किए ।
अब भी याद बड़ी आती हो तुम
आकर मेरी नींदों में मुझे सताती हो तुम ।
वो तेरा मुझसे हंसकर बातें करना
तेरी कदमों का मेरे कदमों के साथ चलना ।
सब याद आता है
मेरे दिल को हर पल बड़ा तड़पाता है ।
क्यों भूलकर भी भूला ना पाए
तेरी यादों को दिल से मिटा ना पाए ।
इश्क हमें भी था तुमसे
क्यों चाह कर भी बता ना पाए ।
अब भी मन तुम्हें ढूंढता है
लेकिन तुम्हें ढूंढकर भी हम पा ना पाए ।
मैं भूल जाता हूं
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मैं भूल जाता हूं
क्या होगा याद रखकर ।
सिर्फ तकलीफ ही तो देती है
हर पुरानी यादें ।
हां, उससे जुड़ी हैं अब भी
कुछ अच्छी यादें ।
तो क्या करूं
मैं अब उन यादों का।
क्या होगा
अब उन यादों को याद करके ।
किसे बताना है
मैं बताऊंगा भी तो कौन सुनेगा ।
या सुन भी लेगा तो वह क्या कर सकता है,
वह भी तो मेरी तरह भूल ही जाएगा ।
आखिर वह भी तो इंसान ही है
लेकिन उसके भीतर भी क्या आत्मीयता बची होगी ।
या मर गया होगा
मेरी अंतरात्मा की तरह ।
~ रंजन साव
हावड़ा, पश्चिम बंगाल