रेखा शाह आरबी
सबको हमसे है शिकायत
मनाने की हम से कवायत नहीं होती
सबके दिलों का रख लेते ख्याल
बस खुद पे कभी इनायत नहीं होती
दिल के बंजर इस जमी पर
बहुत है कांटो के दरख्त
खुद के खातिर हमसे तो
गुलाबों की कवायद नहीं होती
जाना है तो शौक से जाओ
हमको कांटों के दरमियां छोड़ के
सहरा से कभी मेरे खुदा
चश्मों की गुंजाइश नहीं होती
उमरे हमने है गुजारी बे सबब यूं ही
भटकते सुकून की तलाश में
आती-जाती इन हवाओं से
रुकने की हमसे फरमाइश नहीं होती
एक पत्थर के खातिर
खुद को पत्थर कर डाला
और पत्थरों में कभी
जिंदगी की गुंजाइश नहीं होती
रेखा शाह आरबी
जिला बलिया उत्तर प्रदेश