डा. शाहिदा
कमी कोई न की हम पर सितम ढ़ाने में,
सितमगर अव्वल ही रहा सितम ढ़ाने में |
वो रात को दिन, दिन को रात कहता रहा,
वक्त काफ़ी गुज़र गया उसे समझाने में |
लाख बुलाने पर भी महफ़िल में नहीं आया,
उसके तो दिन रात गुज़रते रहे मयखाने में |
तूफ़ान ऐसा कि चमन वीरान सा लगने लगा,
वक्त कुछ तो लगेगा फिर से बहार आने में |
चमन मे कलियाँ सभी डरकर सहम गयीं हैं,
सिला उसको मिला क्या क्या उन्हें डराने में |
यादे माज़ी रखने का गुनाह हमसे हुआ ज़रूर,
मगर मुद्दत लग जाती है दाग़े दिल मिटाने में |
आग लगाने के लिये बस चिंगारी ही काफ़ी है,
मुश्किलें तो झेलना पड़ता है आग बुझाने में |
मोहब्बत की तपिश तो मेरे दिल मे थी शायद,
मैं बेवजह ढूढ़ता फिर रहा था उसे ज़माने में |
शाहिद, होश खो देता या मदहोश हो जाता,
बात कुछ ऐसी भी न थी साक़ी तेरे पैमाने में |