गोविन्द कुमार गुप्ता
जाते हो तुम जाना,
ईश्वर को बतलाना,
जब तुम्हे बुलाना था ही
क्यो भेजा यह समझाना,।।
अभी सपने बहुत बड़े थे,
जो सामने मेरे खड़े थे,
जीवन की बगिया में भी,
पल खुशियों भरे पड़े थे,
पर एक आंधी सी आई,
सपने टूटे से पड़े थे,
प्रभु क्या जल्दी थी तुमको,
यदि तुमको था अपनाना,।
जब तुम्हे बुलाना था तो
क्यों भेजा यह समझाना,।।
बचपन से जवानी तक हम,
जिनकी गोदी में खेले,
वह आंखों से है देखे,
यह लाशों के है मेले,
कैसा यह नियम बनाया,
जरा मुझको तो समझाना,,
जाते हो तुम जाना,
ईश्वर को बतलाना,,
जब तुम्हे बुलाना था तो,
क्यो भेजा यह समझाना,।।
असमय ही क्यो है बुलाया,
क्यो इस जग को है रुलाया,
छोटे छोटे है बच्चे,
क्या उनको कुछ समझाया,
कैसे है नियम तुम्हारे,
जरा हमको तुम बतलाना,,,
जब तुम्हे बुलाना था तो,
क्यो भेजा यह समझाना,।।।