ग़ज़ल
सुनो जीवन के पथ पर माँ पिता बनता सहारा है
सिवा इनकें नहीं कोई यहां देता किनारा है ।
भरोसा चाहें जितने भी यहां कर लो किसी पर तुम
पुकारोंगे कभी जो तुम नहीं देता सहारा है ।
परीक्षा की घड़ी में लोग अक्सर ही दुबक जाते
नहीं वो साथ देते और कहते हैं अवारा है ।
करों तुम माँ पिता के साथ जितना भी ग़लत लेकिन
वो लोगों से है कहते बेटा आँखों का तो तारा है ।
बुढ़ापे का बनेगा बेटा मेरा भी सहारा सुन
तभी कष्टो में हमने ज़िन्दगी अंजू गुज़ारा है ।
ग़ज़ल
प्यार में अपना जीवन गवा दो मुनासिब नहीं होता यह आशिकी के लिए।
जान दे दो किसी के लिए तुम मुनासिब नहीं होता यह ज़िन्दगी के लिए।
आज़ माना मुहब्बत में मिलते हैं धोखे बहुत प्यार करना सज़ा बन जाती,
ज़िन्दगी की राहों में भी कुछ लोग मिलते हैं केवल सुनो दिल्लगी के लिए।
ख़ूब वादे करे लोग इक दूजे से , इस मुहब्बत में पड़कर जीने- मरने का।
ख़्वाहिशें पाल लेते बहुत दिल में वो ,लड़ते आपस में थोड़ी ख़ुशी के लिए।
ग़म भी देता है दस्तक ख़ुशी मिलने पर ,और लोगों को चलता पता भी नहीं।
हाथों से हाथ कब छूट जाता है फिर , वो तरस जाते थोड़ी हँसी के लिए।
किसकी परवाह करता ये दुनिया वाले ,कौन है रहनुमा बतला दो अंजु को,
मतलबी आदमी मतलबी रिश्ता भी , कौन रोता किसी अजनबी के लिए।
अंजु दास गीतांजलि पूर्णियां बिहार की क़लम से 🙏🌹🙏👈