मन ही साँचा मीत

मन्शा शुक्ला

आओं बैठ साथ हम स्व के

  खूद से खूद की बात करें

कुछ सूनें हम मन की अपनें

कुछ कहें मन भाव अपनें

आओं बैठ..................।


मन जैसा नहीं मीत जग में

सदा निभाये प्रीत निज से

सुलझ जायेगी सारी उलझन

अन्तःमन की बात सूनें

आओं बैठ...............।


भेद विभेद वहाँ नही होता

छल प्रपंच का स्वांग न रचता

संगी बना विवेक को अपनें

निज कर्मो का विस्तार करें

आओं बैठ...................।


मन उज्जवल दर्पण के जैसा

कर्मो का आरसी बन कहता

भले बूरे कर्मों का लेखा

छिपता नही है खूद से

कभी साँच झूठ का भेद

आओ बैठ...............।


 मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर

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