नाम : नीलम राकेश
प्रति : एडिशनल डायरेक्टर एच.एल.एस. इंडिया, स्वतंत्र लेखन.
प्रकाशन : 23 पुस्तकें प्रकाशित, पांच पुस्तकों का संपादन, 1 बाल पत्रिका का संपादन.
सम्मान : चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट द्वारा अनेक बार पुरस्कृत.
• नागरी बाल साहित्य संस्थान बलिया द्वारा ‘मधुर’ सम्मान (अनोखी छुट्टियॉ के लिये) (वर्ष 2001)
• उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा बाल साहित्य के लिए सुभद्रा कुमारी चौहान स्मृति सम्मान (वर्ष 2016)
• विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान हरियाणा द्वारा "संस्कृति भवन साहित्य सेवा सम्मान" (वर्ष 2019) आदि.
संपर्क : नीलम राकेश
610/60, केशव नगर कालोनी
सीतापुर रोड, लखनऊ, उत्तर-प्रदेश-226020
दूरभाष नम्बर : 8400477299
neelamrakeshchandra@gmail.com
सुसंस्कार-कुसंस्कार
सासू मॉं जबसे आई थीं रोये जा रही थीं । साथ ही अपनी दोनों बहुओं को कोसे जा रही थीं । पत्नी दौड़-दौड कर अपने माता पिता की सेवा में लगी थी । मेरे मौन से परेशान श्वसुर मेरे पास आकर बोले,
‘‘कैसी किस्मत है मेरी, दो-दो बेटों के होते भी अपना बुढ़ापा काटने के लिए बेटी-दामाद का मुँह जोहना पड़ रहा है । अब तुम ही बताओ दामाद जी, संस्कार तो इन्सान अपने बच्चों को देता है। लेकिन बहू तो दूसरे परिवार से लानी पड़ती है और उसके कुसंस्कारों को स्वयं ढ़ोना पड़ता है । तुम्हीं बताओ यह कहॉं का न्याय है ।’’
‘‘आप ठीक कह रहे हैं बाबूजी । बहू के कुसंस्कारों को घर के बुजुर्गों को ही सहना पड़ता है । आपने अच्छा किया जो यहॉं चले आये । आज आप लोग आराम कीजिये, कल मैं आप लोगों को भी वहीं पहुंचा दूंगा जहां आपकी बेटी ने मेरे माता-पिता को पहुंचा दिया है।’’
‘‘क्या ऽऽऽऽ..........., समधी जी-समधन जी यहॉं घर पर नहीं हैं?’’ अचानक सासू मॉं को उनकी अनुपस्थिति का भान हुआ ।
‘‘नहीं’’
‘‘कहॉं गये वो लोग?’’ संशकित से श्वसुर जी बोले ।
‘‘कहॉं जाते? मैं तो उनका इकलौता बेटा हूँ ।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘वृद्ध आश्रम’’
नीलम राकेश
610/60, केशव नगर कालोनी
सीतापुर रोड, लखनऊ उत्तर-प्रदेश-226020,