मतभेद

 


साधना कृष्ण

    बाबू रणविजय सिंह की उम्र यही पचपन की रही होगी।भरा पुरा खानदान , अकूत संपदा और महल सा मकान। पत्नी स्वाति को एकदिन हार्ट अटैक आया और वह चल बसी। स्वाति के मरने का मातम लोगों ने इस रुप में मनाया...वह तो सुहागीन मरी ,भाग्यशाली थी। बज्रपात तो सिंह साहब पर हुआ।अभी भरी जवानी है ,बेचारा कैसे काट पायेगा तन्हा जीवन।शादी तो करनी ही होगी वरना बहक जायेंगे। खानदान की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जायेगी।

         सभी आत्मीय जन समझाने बुझाने में लग गये।रणविजय बाबू ने भी हामी भर दी। क्रिया कर्म केपश्चात अखबार में विज्ञापन दे दिया गया....।


     दो महीने बाद सिंह साहब पुनः नये जीवन की शुरुआत किए।लोगों ने संतोष की साँस ली।


2. बाल विधवा अंजली को अभी इतनी अकल भी नहीं थी कि वह आगे के जीवन के संकट को भांप पाती।ऊपर से गोदी का दूधमुंहा बच्चा न तो उसे जी भर के शोक मनाने देता और ना कभी आत्म चिंतन करने देता।घर के लोग और नाते रिश्तेदारों के द्वारा उसे तरह तरह का उपालंभ दिया जाने लगा...कुलक्ष्णी है...।पति को खा गयी।अब घुमेगी सांढ़ की भांति। वह सुनसुन कर हीन भावना से ग्रस्त होगयी।अगर बच्चे का मोह नहीं रहता तो वह आत्महत्या कर लेती ।लेकिन उसे असहाय छोड़ कहाँ जाये ।

             अंजली के माँ पिता दूसरी शादी की प्रस्ताव रखें तो उसके ससुराल वालों ने सिरे से खारिज कर दिया। यहाँ तक कि अंजली भी अपने बच्चे के सहारे जी लेने का जज्बा पैदा कर ली।उसने कहा...माँ मैं अब पति की निशानी बच्चे को अपना जीवन देना चाहती हूँ।आप अब कभी शादी के लिए मुझपर दवाब मत बनाइयेगा।

     लोगों ने अंजली के निर्णय को सराहा।वह जी जान से बच्चे के लालन पालन में लग गयी।


साधना कृष्ण

लालगंज,वैशाली ,बिहार

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