वीर नारी

देवकी दर्पण

तिलक लगा कर के रोली का मस्तक,

ओर लगाये है प्रेम के अक्षत। 

थाली मे दीप जला के उतारी है, 

पिया की प्रिया ने आरती उस वक्त। 


छू के चरण कह दिया की जावो, 

जी भर बहा देना दुष्मन का रक्त। 

उनको भी मारना ओर पछाड़ना,

जो करते मेरा देश विभक्त।।१।। 


मुड़कर चला सेनिक करके जुदाई, 

नजरें टिकाये ही रह गई नारी। 

सपने सजाये थे किसने ही उसने, 

दुखड़े से हो गई झट से दुखारी।

रोक रही थी वो असुवन का जल, 

कांप रही थी वो पूजा की थारी। 

याद पिया तेरी घुट घुट के सहलूगीं, 

महकाना चहकाना केशर की क्यारी।।२।।


वो आया इक दिन नये अंदाज से, 

सेना की टुकड़ी को साथ मे लेकर। 

भारत माँ की जय गूंज रही थी, 

मस्त था वो ताबूत मे सोकर। 

देख उसे हक्की बक्की वो रह गई, 

श्रृंगार किया स्नान बनाकर। 

पति की अर्थी उठी शमशान को, 

खुद ई चली अपना कंधा लगाकर।।३।। 


नारी नही नारी होती है देवी, 

दिव्य गुणों से ही पुज्य है नारी। 

चित्तोड़ की रानी के जोहर की, 

आदर्श कहानी रही हमारी। 

झासी की रानी तलवारे बजा कर, 

दुश्मन पर टूटी कर घुड़ की सवारी। 

नारी ही काली है दुर्गा रण चंडी है, 

वसुन्धरा जिसने हरदम सवारी।।४।।


 🌷देवकी दर्पण🌷✍

काव्य कुंज रोटेदा

 जिला बून्दी( राज.) 

पिन 323301

 मो. वार्सप 9799115517.


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