डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अब तक चाहा,फिर चाहूँगा ,गाकर विदा मुझे करना।
रोकर विदा सभी करते हैं,हँसकर विदा मुझे करना ।।
बाग मेरा सिंचित रखना,कली फूल नित उग आयेंगे ।
अहसासौं के दरवाज़े पर,खिलकर विदा मुझे करना ।।
प्रीत कभी कम ना होगी प्रिय,तुमसे बेहतर को जाने ।
हार जीत के फर्क कसीदे, बुनकर विदा मुझे करना ।।
तेरे चेहरे की रौनक ही,मेरे घर चौखट है ।
बार-बार घूँघटशर्मीला,सजकर विदा मुझे करना ।।
अब तक रहा वाँचता पुस्तक,बेशक एक बार पढ़ना ।
पुस्तक से ही प्यार मुझे था,कहकर विदा मुझे करना ।।
इस दूनियाँ के शैर सपाटे ,मिलकर देख लिये सारे।
फिर स्वप्नों के नये सवेरे,रखकर विदा मुझे करना ।।
जीवन के कुछ कदम साथ थे,राह सभी आसान हुईं ।
अब बढ़ता हूँ राह अकेला ,सुनकर विदा मुझे करना ।।
बिन जिसके मैं सदा अधूरा,कलम साथ में रख देना ।
तुमको ही मैं पुन: लिखूंगा,लिखकर विदा मुझे करना ।।
सुख दुःख समय चक्र के पहिये,संघर्षों से बहुत लड़ा हूँ ।
काव्य पताका लो लहरा दो,लड़कर विदा मुझे करना ।।
आज समेटे राग प्यार के,अनुज तुम्हें वन्दन करता ।
दर्पण सी एक नाव किनारे, लाकर विदा मुझे करना ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।