गरमी

 सुन्दरी सवैया

माया शर्मा

गरमी सचहूँ अब अ$ति करे,सब पीपर छाँह अगोरत बाड़ें।

अपने अइलें सँहवा लइलें बकरी बछिया सब डोरत बाड़ें।

जब लूह चले तब ताप बढ़े,गमछा जल में सब बोरत बाड़ें।

सुहुतात घरी जब प्यास लगे,तब बेल सँहे गुड़ घोरत बाड़ें।।१।।


गमके बगिया मधुमास घरी,बढ़ते गरमी फरि के लटि जाले।

जब आम फरे लटके भुइयाँ,ठेहुनी क बले सब लोग सम्हालें।

इमली महुआ लिचि जामुन के बड़ घ$वद देखि सभे ललचालें।

रखवार जबे टकसे कतहूँ,लइका झटहा लइके टुटि जालें।।२।।


माया शर्मा

पंचदेवरी,गोपालगंज(बिहार)

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