!दो सखियां आपस में बात कर रही हैं उन्हीं की भावनाओं को दर्शाने का प्रयास किया हूं !!
गिरिराज पांडे
जब हो बेला हमारी विदा की सखी
करके सिंगार मुझको सजाना सखी
मेरे सजने में कोई कमी ना रहे
ऐसी सुंदर सी दुल्हन बनाना सखी
देख मुझको पिया भी बहकने लगे
संग में मेरे हर दम ही चलने लगे
साथ छूटे ना ऐसा मिलाओ सखी
प्यार उनका तो हरदम ही पाऊं सखी
साथ मेरे सदा प्यार उनका रहे
एक उनका ही अब आसरा है सखी
अब तो चल करके डोली पर बैठाइए
आंसुओं से पलक को भीगा जाइए
ज्यों-ज्यों गाड़ी हमारी उधर को बढे
भीगी पलकों से आंसू बहा जाइए
दूर दिखती रहे गाड़ी जब तक तुझे
अपने नैनों से एक टक लखे जाइए
मम्मी पापा हमारे जो बैठे कहीं
पास उनके तो अब तू चली जाइए
तेरी बेटी वहां अब तो रानी बनी
बात करके दिलों को तो समझाइए
मम्मी पापा की आंखों में आंसू भरा
उनकी आंखों से आंसू मिटा जाइए
होना कोई शिकन तेरे चेहरे पर अब
सबके चेहरे पर अब तो हंसी लाइए
अब तो सब से बिछड़ कर के जीना पड़े
जीवन दस्तूर है यह निभाना पड़े
यादों में अपने मुझको बसाना सखी
यादों में याद आना तुम मुझको सखी
ना कभी भी मुझे अब तू भूलो सखी
याद आओगी रह-रहकर हरदम सखी
जब धड़कने लगे तेरा दिल यह कभी
तू समझ लेना यादों में डूबी सखी
गिरिराज पांडे
वीर मऊ
प्रतापगढ़