शिवम पचाैरी
(1) हिन्दाेस्तां के तख्त-ए-सल्तनत से तू कुछ सीख आर-पार कर
यहां सरजमीं से कभी अफज़ल निकलता है ताे कभी सावरकर
(2) तमाम किये गये गुनाहाें काे अब सिर्फ़ एक चादर से ही ताे ढांक रहा हूं
तुम जाे तस्वीर भेजते थे उन्हें देखकर ही ताे अब तन्हाईयां काट रहा हूं
(3) ना चाह जन्ऩत की है और ना किसी दूर सैर की है
तकदीर में काेई और ही है मन्ऩत किसी और की है
(4) जिन्दगी रहेगी ताे सारे लाेंगाे का फिर से यूं मिलना हाेगा
जैसे एक पूर्ण सदी का भयंकर कारवां गुज़र गया हाेगा
Shivam pachauri
Firozabad