इंदु मिश्राा 'किरण'
कठिन राहों पे जो भी मुस्कुराना भूल जाते हैं
जहाँ वाले उन्हीं का हर फ़साना भूल जाते हैं
क़दम बढ़ने लगे तो पंख मिलते हौसलों को भी
थकन फिर ओढ़़कर बातें बनाना भूल जाते हैं
चिराग इस वास्ते सिसके हैं अक्सर रात आने पर
तुम्हारे नूर के आगे जलाना भूल जाते हैं
उमर यादों में जिनके ही गुजारी है सदा हमने
कहाँ मशरूफ़ हैं वो ये बताना भूल जाते हैं
सियासी लोग हैं इन पर यकीं करना नहीं 'इंदु'
ये अपने खुद के वादे ही निभाना भूल जाते हैं
इंदु मिश्रा'किरण'
नई दिल्ली