लघु कथा---
उषा की बेला,मंदिरों में घंटियों की मधुर आवाज़ ।गंगू घर से बाहर आया, तुलसी चौरे को नमस्कार किया और हाथ में तीन रंगों के कटोरे से रंग निकाल कर पास के एक दीवार पर केसरिया, सफेद और हरे रंग से रंगा।बीच में चक्र भी बनाया, ध्यान से देखा और घर में चला गया।थोड़ी देर में कंधे पर एक झोला लटकाये बाहर आया।उसे देखकर बिरजू चाचा मुस्कुराते हुए बोले--क्यों रे गंगू काम पर जा रहा है?गंगू ने उन्हें प्रणाम करते हुये बोला-हाँ चाचा!बिरजू आश्चर्य से बोला ---अरे बेटा आज तो स्वतंत्रता दिवस है।सभी छुट्टियां मना रहे हैं और तुम काम पर जा रहे हो?गंगू बोला--हाँ चाचा इसी धरती माँ के लिये ही जा रहा हूँ।
उसी समय एक जुलूस उधर आई।सभी के हाथों में भारतीय ध्वज।जय हिंद का नारा बुलंदियों को छू रहा था।अचानक चाचा बोल उठे--देखा देशभक्ति!गंगू ने सिर हिलाया और बोला--चलता हूँ चाचा......
गंगू चल पड़ा नदी की ओर।बरसात का मौसम!नदी चढ़ी हुई थी।नदी का वेग गाँव की मिट्टी को काटता हुआ बह रहा था।देखते-देखते गाँव का एक बड़ा हिस्सा नदी के गर्भ में समा चुका था।असहाय दृष्टि से गंगू ने देखा।झोला नीचे रखा और पास में पड़ी बालू, पत्थर उठा- उठा साथ लाए बोरे में डालता और बोरे का मुँह बांध देता।बोरा उठा-उठा कर तट पर डाल देता।यह काम करीब वह महीने भर से कर रहा था।हजारों बोरे वह तट पर डाल चुका था।इस तरह से वह नदी को गाँव की तरफ मुड़ने से रोकने का प्रयास कर रहा था।वह गाँव को बाढ़ से बचाने का प्रयास कर रहा था और कुछ हद तक सफल भी हो रहा था।
बिरजू चाचा उधर सोच रहे थे कि आखिर यह गंगू जाता कहाँ है?वे पीछे-पीछे छुप कर देख रहे थे।गंगू को ऐसा करता देख उनके आँखों से आँसू निकल पड़े।बिरजू चाचा चुपचाप घर की ओर लौट गए।शाम ढलने पर थका-हारा गंगू घर लौट आया।घर के सामने बिरजू चाचा बैठे उसे देख रहे थे।बिरजू आया और जिस दीवार पर उसने तिरंगा बनाया था उसे नमस्कार किया।माथा टेका और चाचा के पास बैठ गया।
चाचा ने पूछा कि वह कहाँ गया था तो उसने बस इतना ही बोला--चाचा धरती माँ का कुछ कर्ज है हम सब पर। आज के पावन दिन पर कुछ कर्ज उतारने गया था।बिरजू से रहा नहीं गया।उसने गंगू को सीने से लगा लिया और बोला--आज इस धरती माँ को तुम्हारे जैसे नवजवानों की जरूरत है।हाथ में पताका लेकर चिल्लाने वालों की नहीं।मैं सब देख आया हूँ बेटा।तुमने देश के प्रति अपना कर्तव्य पूर्ण किया है।यही स्वतंत्रता की निशानी है।धन्य है भारत माँ, जिसने तुम जैसे पूत को जन्म दिया।
बिरजू चाचा की आँखों से अनवरत अश्रु बह रहे थे और गंगू की मुखाकृति पर असीम शांति।
मीना माईकेल सिंह✍️
कोलकाता