उसका मिलना नसीब है
निगाहें झुका कर देखना अजीब है,
वो दूर रहकर भी कितना करीब है।
चाहत और हसरत में बहुत फर्क है,
दोनों का साथ मिलना,खुशनसीब है।
वो दर्द सहकर भी मुस्कुराता है,
मेरा हमदम भी कितना अज़ीज़ है ।
बने-बनाए आशियाने से क्या करना,
उसके निगहबानी में,बनना लजीज है।
मैं खुश हूं उसकी पनाह में यारों ,
जाने किस लम्हा दिल बना कनीज है।
सब देखकर हंसते हैं दीवानगी मेरी,
इंशा अल्लाह उसका मिलना नसीब है।
सफर साथ-साथ है
ऐसे लगता है जैसे कल की बात है,
कितनी प्यारी अपनी मुलाकात है।
जश्न-ए-बारात मनाया हमने साथ-साथ
सोचने पर लगता है जैसे कल की बात है।
कुछ लोग जख्म देते हैं दामन-दामन,
उनके लिए तो सब बेवजह बात है।
कितने ख्वाब चूर-चूर हो गए हैं दोस्त,
खैरियत जो मिले उनकी तो बड़ी बात है।
कतरा-कतरा जीने से अच्छा है मर जाना,
कर सको बन्दगी उसकी,बड़ी सौगात है।
हाथ पकड़ा है तो निभाना सीखो सनम,
प्रेम से निभ गया जो,वही अपना साथ है।
आओ हम अब आगे बढ़ें राह में साथी,
मंजिल तक का सफर अब साथ-साथ है।
छूट जायेगा एक दिन जहां, धीरे-धीरे
छूट जायेगा एक दिन जहां, धीरे-धीरे,
हो जायेगा वीरान , मकां धीरे-धीरे ।
बातें बहुत सी अनकही ,रह गई हैं,
होगी ज़ुबान , बेजुबान धीरे-धीरे।
रूठना - मनाना , कुछ देर तक है,
रूठ जाएगा जान-ए-जहां , धीरे-धीरे।
मयस्सर नहीं है सभी को मुहब्बत,
बेमुरब्बत बनो मत यहां , धीरे - धीरे।
हसरतें लेकर आयी थी,आंगन में तेरे,
चली जाऊंगी खाली हाथ, धीरे-धीरे।
तू सोया है बेख़ौफ़ नींद में मेरे रहबर,
मैं छोड़ जाऊंगी ये आशियां, धीरे-धीरे।
माटी की काया , माटी में मिलेगी,
मिट जाएगा नाम-ओ-निशां,धीरे-धीरे।
जिसने दिया है, जिन्दगी की ये दौलत,
उसी से मिलेगी , ये हया धीरे - धीरे ।
क्या तेरा,क्या मेरा?महज़ नाम का बसेरा,
उसी से सब कुछ मिला , धीरे - धीरे।
अनुपम चतुर्वेदी,
सन्त कबीर नगर,उ०प्र०
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