गीतिका



महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी

जीवन की आशा थी बगिया जलकर के धूल हुई है

मानों या ना मानो मितवा कुदरत भी कूल हुई है 

नाव नदी तालाब पोखरे बाग विहग अरु झाड़ी

पैसे की गर्मी में झुलसे नित अगणित भूल हुई है।।


गाँव किनारे चहुँ दिशि छाया हरियाली थी न्यारी

दादा ने पौधे लगवाये कीमत फसल वसूल हुई है।।


जंगल मंगल हेतु उगे थे वन जीवों की खुशहाली

आग लगी और जले मवेशी पंक्षी पर शूल हुई है।।


चिंगारी भर नयन मचलते अपनापन का दौर गया

कलियों की दर्दीली आहें नागफनी शिर फूल हुई है।। 


दूषित नजरों की बेदी पर चढ़ जाती बेबस बाला

कैसी है ये चाल विरानी बिन पठार पग थूल हुई है।।


गौतम किस युग का यह दर्पन दिखलाता है लाचारी

सुख सुविधा दुखदायी लगती बस पीड़ा मूल हुई है।।



Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं रुड़की उत्तराखंड से एकता शर्मा
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं अनिल कुमार दुबे "अंशु"
Image
पितृपक्ष के पावन अवसर पर पौधारोपण करें- अध्यक्ष डाँ रश्मि शुकला
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं लखीमपुर से कवि गोविंद कुमार गुप्ता
Image