अमृत को त्याग बढ़ लिये पीने जहर को

डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"

कोई साथ ना अपने ,

निकले अपनी डगर को ।

छोड़ प्यारे गाँव ,

चल दिये शहर को ।

जीवन के लिए ऐसा ,

करते हैं सब मगर ,

मन में है विश्वास ,

लौट आयेंगे घर को ।।

माता-पिता का प्यार ले,

बढ़ते हैं राह पर ।

उनको छोड़ चल दिए ,

उनके हाल पर ।।

अमृत को त्याग बढ़ लिए ,

पीने जहर को ।

छोड़ प्यारे गांव ,

चल दिए शहर को ।।

जीवन में साथ देने का ,

वायदा किया जिसने ।

छोड़ा साथ उसका ,

जोड़ा हमें जिसने ।।

कैसे ?झेल पायेंगे ,

ख्वाबों के कहर को ।

छोड़ प्यारे गाँव ,

चल दिए शहर को ।।

होता सवेरा रोज ,

सुनते थे किलकारी ।

शहनाई सी आवाज ,

लगती बड़ी प्यारी ।।

सोते हुए छोड़ आये ,

टुकड़े -जिगर को ।

छोड़ प्यारे गाँव ,

चल दिए शहर को ।।

खेले थे दोस्तों में ,

भैया भी साथ में ।

अब कौन? कहाँ ?रहे ,

नहीं अपने हाथ में ।।

छोड़ बहिन चल दिए ,

गंगा सी लहर को ।

छोड़ प्यारे गाँव ,

चल दिए शहर को ।।

डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"

अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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