एक हिचकी ले आई
दर्जनों यादें उनकी
एक सिसकी में दबा लीं
हमने सारी बातें अपनी
निवेदिता रॉय
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अपने जब दूर तले जाते हैं
अक्सर ख़्यालों में मिलने आते हैं
काश वो लम्हा ठहर जाए
जब उनके मिलने की आहट आए
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माना कि तुम बा वफ़ा
हम बे ख़ता हैं
तो ये फ़ासला क्यों है ?
तसव्वुर में ही सही मुहब्बत तो अब भी है
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निवेदिता रॉय
(बहरीन)