निवेदिता राय के शेर

एक हिचकी ले आई 

दर्जनों यादें उनकी 

एक सिसकी में दबा लीं 

हमने सारी बातें अपनी 


निवेदिता रॉय 

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अपने जब दूर तले जाते हैं 

अक्सर ख़्यालों में मिलने आते हैं 

काश वो लम्हा ठहर जाए 

जब उनके मिलने की आहट आए

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माना कि तुम बा वफ़ा

हम बे ख़ता हैं 

तो ये फ़ासला क्यों है ?

तसव्वुर में ही सही मुहब्बत तो अब भी है 

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺


निवेदिता रॉय 

(बहरीन)

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