भुजंग प्रयात छंद
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भरोसा हमारे , बफा गीत गाना ।
सहारे किनारे ,खुशी जीत लाना ।।
जता दो इरादे ,नयी रीति बाना ।
दया भाव जागें,धरा प्रीत पाना ।।
सवैया
राहत पावत नैन लजावत ,रूप निशा पहिचानत आये ।
भोर बनावट खोजत जावत,चांद नज़ाकत झाँकत गाये ।।
सूरत कायल मूरत घायल ,बूँद शिकायत पीर बढ़ाये ।
पेड़ हिफाजत भूल गया जग,मेघ किफायत नीर उड़ाये ।।
मोर मुकट छवि,कण-कण गाये ।
बजत मुरलिया , मन मुस्काये ।।
स्वप्न जिन्दगी ,जीवन माधव ,
लिखत पढ़त जग,प्रीत सुहाये ।।
अनुजयी दोहे
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घर में खुशियाँ ढूँढ़ लें,चाहत मिले अपार ।
हवा भयावह बह चली,राहत की दरकार ।।
चिड़िया ओढ़े मौन अब,छाया भ्रम आगोश ।
थका हुआ हर अंक है,रहे आज खामोश ।।
इजहार
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चिन्ताजनक इजहार, पीढियाँ ओढ़ लेती हैं ।
बफा के वास्ते वबा,तितलियाँ मोल लेती हैं ।।
अनुज की ख्वाहिशे चाहे,
दफन की नोभतें आये ।
दग़ा पर दे दया के दाग, सीढ़ियाँ तोल लेती हैं ।।
किसान
कली-कली खिली मिले , दिखे लगाव डाल का ।
दशा,दिशा सराहती , पड़ाव राग काल का ।।
चला किसान हाथ में , कुदाल ले कमाल का ।
करे निदान साथ ही , जमीन के सवाल का ।।
सवैया
खेत खड़े बरसात रमे लखि, सोवत जागत हालत गाये ।
माँग किसान अनाज उगावत , लागत मोर नचावत खाये ।।
आँगन में चिड़िया चहके, महके इस बार पिया घर जाये ।
ना अहसास रहे मधुमास ,बसंत कहाँ शुधि चादर लाये।।
सपूत
भला करो दुआ मिले,अनाथ को दुलार दो ।
गरीब राह में घिरे ,दवा दया विचार दो ।।
सपूत हो चले चलो ,हवा बनो बहार दो ।
कराहती धरा कहे ,गली-गली सुधार दो ।।
शिखरिणी छन्द
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खुशी की धारा हो,जड़ित श्रम चाहे जब जहाँ ।
कभी मौक़ा पाये ,विदित कल आये कब कहाँ ??
सदा आशा जागे ,क्षणिक नभ गाये जल तहाँ।
गरीबी के लेखे , भ्रमित सुख राहें छल वहाँ ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज "
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।