सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
जरूरत से ज्यादा की कभी चाह मत कर।
अंधी दौड़ में जीवन को तबाह मतकर।
कितनें लोग मुफलिसी में दिन काटते हैं,
किसी गरीब का मजाक उड़ा वाह मत कर।
मजबूरी का फायदा उठाना जुल्म है,
दूसरों के शोषण करके गुनाह मत कर।
यहाँ कौन किन मुसीबतों में हैं रह रहे ,
बैठे--बिठाए बेमतलब सलाह मत कर।
अपने गुस्से को रख ले काबू में 'सुलभ',
कर जलील किसी को तिरछी निगाह मत कर।
सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
इन्दौर मध्यप्रदेश