कवि ऋषि तिवारी "ज्योति" की रचनाएं

 


गाली मुक्त जुबान बनाएं 

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सत्य वचन की कोशिश हो,

शुद्ध कथन की कोशिश हो,

धीरे-धीरे ज्ञान बढ़ाकर,

सत्य को हम पहचान बनाएं ।

आओ नई पहचान बनाएं,

गाली मुक्त जुबान बनाएं ।।


सुन्दर सुन्दर शब्द पढ़ें हम,

धीरे-धीरे कदम बढ़े हम,

अज्ञानता के अंधकार में,

एक ज्ञान का ज्योति जलाएं ।

आओ नई पहचान बनाएं,

गाली मुक्त जुबान बनाएं ।।


कुछ रिश्तों में मजाक चलत है,

गालियों की बौछार चलत है,

पर गाली को अब दूर हटाकर,

हंसता हुआ मजाक बनाएं ।

आओ नई पहचान बनाएं,

गाली मुक्त जुबान बनाएं ।।


दृढ़ प्रतिज्ञा करें स्वयं से,

कुछ बातों पर लड़ें स्वयं से,

एक ऐसा भी क्रांति जगाकर,

गंदी गाली से समाज बचाएं ।

आओ नई पहचान बनाएं,

गाली मुक्त जुबान बनाएं ।।


अपने प्यारे गांव में 

****************

कुछ 

पैसों के कारण, 

दर-दर भटके 

शहर की,

गलियों में ।


कांटें

जैसे चुभे हुए हों,

पुष्प गुलाब,

के कलियों में ।


याद हमें

आती है वो,

झरही वाली

नांव में ।


आओ मेरे

यारों,

फिर से

अपने प्यारे

गांव में ।।


वो धूप

मचलती राहों में

जब प्यास

बुझाए पोखर ।


शहरों में

वो नहीं

मिलत है

बाग बगीचे

खोकर ।


सारे

कष्ट दूर

हो जाते

मानों पीपल

के छांव में ।


आओ मेरे

यारों फिर से

अपने

प्यारे गांव में ।।


✍️ ऋषि तिवारी "ज्योति"

चकरी, दरौली, सिवान (बिहार)

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