बचपन की बातें

 


मनु प्रताप सिंह


बचपन की बातें माँ सुनाती,स्नेह मेरा जग उठा।

बचपन की यादें,कितने झगड़े,गुस्से में तो रूठा।।


मिट्टी खायी, माँ की मार खायी।

दौड़ आयी,जिद के रोटी खिलायी।।

मेरे मधुर क्षण,प्यार के मारे,मेरे आँसू छूट पड़ा।

बचपन की बातें माँ सुनाती,स्नेह मेरा जग उठा।1।


न जिम्मेदारी, ना दुनियादारी।

बस सिर्फ़ थी,मौज हमारी।।

खुशियों ढेरों पर,चिढ़ कितनी,मेरा गुस्सा तो फूटा।

बचपन की बातें माँ सुनाती,स्नेह मेरा जग उठा।2।


गूँजी किलकारी,सुंदर सपने में।

रहते सदा थे, अपने पन में।।

चुराएं मक्खन,बने श्यामा,बताओ मै कितना झूठा।

बचपन की बातें माँ सुनाती,स्नेह मेरा जग उठा।3।


हठ को लिए , ठुनकते रहते।

समझाती माँ पर,रोते रहते।।

ज़िद करते थे, शोर करते थे,क्यों ना लाये मेरा मीठा।

बचपन की बातें माँ सुनाती,स्नेह मेरा जग उठा।4।


माँ की ममता,पिता का साया।

सावन के झूले,मन लहराया।।

आती जवानी में,जाते वक्त में,बचपन का सपना टूटा।

बचपन की बातें माँ सुनाती,स्नेह मेरा जग उठा।5।


मनु प्रताप सिंह


 चींचडौली

 ( काव्यमित्र ), खेतड़ी

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