शरद कुमार पाठक
तुम ना मेघा बरसे
आशाओं की सघन बदरिया
उमड़ उमड़ रह जाये
जैसे- स्वाँति बूँद बिन
चातक व्याकुल
दादुर टेर लगाये
जल बिनु मीन नदी बिन बारी
आतप धरा अकुलाये
एक बसन्त के आने से
पीहू आस लगाए
शाखों पर कोयलिया बैठी
सुंदर मधुराग सुनाये
जैसे -कानन विचरति
कोई तरुणी
गीत विरह के गाये
आशाओं की सघन बदरिया
उमड़ उमड़ रहजाये
तुम ना मेघा बरसे
(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक----(हरदोई)
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