आहिस्ता फिसलती है कलम की स्याही
सजते हैं मखमली बोल;
हृदय से उतार कर रखते हैं पन्ने पर,
तब जाकर मिलती है तारीफ़!!
मन की दुनिया के एहसास
दर्द भरे लव्ज़ जो खास;
चुन-चुन कर बुनते हैं पन्ने पर,
तब जाकर मिलती है तारीफ़!!
शब्दों का तीर जब लग जाए
आप कहने को मजबूर हो जाऐं;
मेहनत रंग लाती है तब,
जब मिलती है तारीफ़!!
यूँ तो लिखना छोड़ दिया था,
कविता से मुंह मोड़ लिया था;
मगर खुद-ब-खुद चल जाती है कलम,
जब मिलती है तारीफ़......
माही सिंह