अलख जगाते जो शिक्षा का,
शिक्षक वो कहलाते हैं।
ज्ञान-ज्योति की शिखा जलाकर,
ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं।।
(1)
अनगढ़ मिट्टी के लोंदे हैं,
छोटे-छोटे हम बच्चे।
बच्चों को साँचों में ढालें,
वो शिक्षक होते सच्चे।।
हो भविष्य की सुदृढ़ इमारत,
पक्की नींव बनाते हैं,।
ज्ञान-ज्योति की शिखा जलाकर,
ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं।।
(2)
बार-बार अभ्यास कराते,
आपा कभी न खोते हैं।
लेकिन इस प्यारी संस्कृति को,
अपने सर पर ढोते हैं।।
भला हो जिससे देश का अपना,
काम वही कर जाते हैं,
ज्ञान-ज्योति की शिखा जलाकर,
ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं।।
(3)
इसी तरह से रहे समर्पित,
पीढ़ी आगे चलती है।
बच्चे होते कल के शिक्षक,
तभी सभ्यता पलती है।।
ऐसे ही अपने पीछे वो,
एक निशान बनाते हैं।
ज्ञान-ज्योति की शिखा जलाकर,
ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं।।
(4)
है महान यह कार्य बहुत,
रहे भाव निःस्वार्थ प्रबल।
शिक्षक-दल के सद्प्रयास से,
होता शिक्षित जगत सकल।।
करके अपनी भागीदारी,
पूजनीय बन जाते हैं।
ज्ञान-ज्योति की शिखा जलाकर,
ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं।।
(5)
सिखलाते अनुशासन सबको,
रहें स्वयं भी अनुशासित।
नए-नए शोधों से अपने,
दिखलाते करके साबित ।।
इस जग में सारे ही शिक्षक,
तभी महान कहाते हैं।
ज्ञान-ज्योति की शिखा जलाकर,
ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं।।
(6)
हम बच्चों का फर्ज यही है,
शिक्षक का सम्मान करें।
पाठ पढ़ाएँ जीवन के जो,
उसमें सच का रंग भरें।।
करके पर्दाफाश झूठ का,
सच का पाठ पढ़ाते हैं।
ज्ञान-ज्योति की शिखा जलाकर,
ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं।।
(7)
आदर्शों पर उनके चलकर,
बच्चे भी विद्वान बनें।
शिक्षक होते जग-निर्माता,
जिनसे सभ्य जहान बने।।
सच्चे सेवक बनें देश के,
नाम अमर कर जाते हैं।
ज्ञान-ज्योति की शिखा जलाकर,
ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं।।
©️®️
गीता चौबे गूँज
राँची झारखंड