संकट

मनहरण घनाक्षरी छंद



कितना ही विकट हो 


ये संकट अकट हो


मन में जो बल हो


दृढ़ होना चाहिए।


 


अवसाद घेरे है तो


 रच लो हाँ छंद नये


आत्ममंथन अटल    


लक्ष्य होना चाहिए।


 


छोड़ कर स्वार्थ सभी


माँग कर क्षमा अभी


दोहन प्रकृति माँ का


छोड़ देना चाहिए।


 


नमन उन्हें करो जो


बने रक्षक हमारे 


कर्म ही अब धर्म है


मान लेना चाहिए।


 


तरुणा पुण्डीर 'तरुनिल'


साकेत ,नई दिल्ली।


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