अपनों से ही छली गई हिन्दी,
राष्ट्र भाषा न बन सकी हिन्दी |
सादर दर साल माह पखवाड़े,
फाइलों में ही घुट रही हिन्दी |
शान से गढ़ रहे हैं हम नारे,
हाशिये पर सिमट गई हिन्दी |
गर्भ से संस्कृत के जन्मी थी,
साथ उर्दू के पल रही हिन्दी |
सबके बच्चे पढ़ेंगे अंग्रेज़ी,
रोज़ी रोटी न बन सकी हिन्दी |
वोट की राजनीति में फंसकर,
राजभाषा ही रह गई हिन्दी |
औपचारिक हिन्दी दिवस की सभी हिन्दी भाषियों को बधाई
अशोक श्रीवास्तव
प्रयागराज