यह दुनिया मेला है
लोगों का रेला है
रिश्तों का झमेला है
फिर भी
हर कोई अकेला है ||
परिवार तो हैं पर आत्मीयता नहीं
त्योहर तो है पर भावना नहीं
रिश्ते तो हैं पर मिठास नहीं
जी तो रहे हैं सभी
पर जीवन कहाँ .....
घर आँगन बिखरे
रिश्ते नाते बिसरे
बस टीस मारती है तन्हाई
और रिसते ज़ख्म
टूटे तार सभी जीने के
खटास भरी इतनी रिश्तों
में खोयी सारी मिठास
सुनते थे खट्टे - मीठे पल
होते ज़रूरी जीवन में ...
पर आज तो बची है
सिर्फ नीरसता , कड़वाहट , दर्द
ख़ामोशी और तन्हाईयाँ ....
यह दुनिया मेला है
लोगों का रेला है
रिश्तों का झमेला है
फिर भी
हर कोई अकेला है ||
~~ मीनाक्षी सुकुमारन
नोएडा