मेरे देश बता दे मुझको कब तक ये विष पियेगा
कब तक तेरे इस आँगन मे अँग्रेजी कीच बहेगी
अपने ही घर मे प्रविसिनी कब तक हिन्दी और रहेगी
मेरे देश.......
जिस आंचल के तले गंगा यमुना हुई सयानी
जहाँ रच रहे, प्रसाद, हरिऔध जैसे अदभुद ज्ञानी
जिस पनघट पर प्यास बुझाते दिनकर पंत और मीरा
जहा बिहारी, केशव की छलकी कान्हा गगरिया
मेरे देश....
हिन्दी के मांन सरोवर में अनगिनत हंसो का डेरा
शारदा माँ की पुत्री वो, जिसका राष्ट्र महल में फेरा
जिन चरणों में नतमस्तक हो सागर निशदिन अश्रू चढ़ाए
जिसकी प्यास बुझाने को बादल आकर नीर लुटाये
मेरे देश.....
कोटि कोटि मानव जिसके आंगन में जा आरती उतारे
उस आंचल मे साथी मेरे दाग न लगने पाए
जिस आंचल में चमका करते सूर्य चंद्र और तारे
उस माटी की पुकार का तुम्हें निमंत्रण है
मेरे देश.. .
श्वेता कनौजिया
प्रधानाध्यापक
गौतम बुद्ध नगर