दीपेश पालीवाल
एक दौर हुआ करता था,जब कवि या साहित्यकार को समाज में एक विशेष सम्मान दिया जाता था।
उस दौर में कवि को कवि महोदय या कविराज जैसे सम्मान जनक नाम से सम्बोधित किया जाता था इसका मुख्य कारण था , उस दौर के रचनाकारों का लेखन स्तर बहुत उम्दा और उच्च हुआ करता था, उन्हें छन्द विधान,अलंकार , काव्य गुण -दोष आदि बातों का पूर्ण ज्ञान हुआ करता था।
किन्तु आज परिस्थितियां पूर्णतः भिन्न है। आज के दौर के होनहार कवि को यह भी नही पता होता की कविता में छोटी इ की मात्रा आएगी या बड़ी ई की और वे भी साहित्य रत्न से सम्मानित होते है जिन्हें साहित्य की परिभाषा तक नही पता।
और तो और वे लोग भी अखबारों में धूम मचा रहे है जिन्हें , लेख, आलेख , प्रतिवेदन, निबंध में अंतर नही पता ।
वे लोग बेस्ट राइटर से सम्मनित हो रहे है जिनके भाव पक्ष और कला पक्ष के कोई ठिकाने नहीं है।
आखिर ऐसा क्यों...?
इसका कारण क्या है...?
1.इसका सबसे बड़ा कारण है व्हाट्सएप ओर फेसबुक के वे छोटे - छोटे ग्रुप जो ऐसे ही बिना बात के सम्मान पत्र बांटते है ,प्रतियोगिता करवाई जाती है । बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा जाता है सम्मान पत्र मात्र 21 रुपए में मात्र 51 रुपए में यही साहित्यिक प्रदूषण की जड़ है।इसमें वे तमाम लोग सम्मानित होते है ,जो कविता के नाम पर कुछ भी लिखते है और कुछ वे लोग भी जो दूसरे की रचना पर अपना नाम चिपका कर प्रस्तुत कर देते है।
2. इसका दूसरा महत्वपूर्ण कारण है,वे समाचार पत्र जो कुछ पैसों के चक्कर में अपना ईमान देते है,और ऐसे ऐसे लोगो को साहित्य का सितारा बनाकर प्रस्तुत करते है जिनको उनकी गली में कोई जानता तक नहीं।
ऐसे चोर सम्पादकों को जो वो लोग भेजते है पूरा का पूरा ज्यों का त्यों छाप देते , चाहे उसका भाव पक्ष एवं शिल्प पक्ष शून्य हो। जिसने जितना ज्यादा पैसा दिया उसको उतना ज्यादा स्पेस,जहाँ योग्यता का पैमाना रचनाकार का लेखन नही उसके द्वारा दिया गया पैसा है,इसी चक्कर मे हर कोई कवि से राष्ट्रीय कवि बन जाता है
3. इसका एक बड़ा कारण है नवोदित रचनाकारों का दमन जो ख्यातनाम कवि नवोदित रचनाकारों को मंच देना तो दूर नवोदित के साथ मंच पर बैठना पसन्द नही करते ।
लेकिन जब बात स्वयं के फॉलोवर्स बढाने की आती है तो सबसे ज्यादा उपयोग उन्ही रचनाकारों का होता है जिनका उन्होंने दमन किया होता है।
लोक डाउन के दौरान हमने देखा कई मंचीय कवियों ने अपने पेज पर फॉलोवर बढ़ाने के लिए दिन में चार चार बार लाइव काव्य पाठ करवाया। उनके अनुसार वे नवोदित को मंच दे रहे थे । किंतु सत्य यह है कि वे केवल और केवल उन नवोदित रचनाकारो का उपयोग अपने फॉलोवर्स बढाने के लिए कर रहे थे।
4.इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण वे संस्थाए होती है जो कहती है हम राष्ट्र स्तरीय कार्यक्रम कर रहे है और आपको मात्र 1500 रुपये में आपको सम्मानित कर देंगे। और मात्र 1500 रुपए में वह व्यक्ति भी साहित्य रत्न से सम्मानित हो जाता है जिसे इस क्षेत्र में 1 प्रतिशत भी अनुभव नही है और इस तरह एक गली का कवि मात्र 1500 रुपए में राष्ट्रीय कवि बन जाता है।
तो , क्या किया जाए ..?
इस सहित्यिक प्रदुषण को कैसे रोका जाए...?
जब तक कवि का या कविता के मूल्यांकन का पैमाना मंच,पैसा, या सम्मान होगा तब तक यह प्रदूषण रुकना संभव नही है।
मैं यहाँ किसी ऐसे संस्थान का नाम नही लिखूंगा जो सम्मान बेच रही हो और न ही किसी समाचार पत्र , प्रकाशक का अथवा व्यक्ति विशेष का नाम लिखूंगा ।
आप साहित्यिक क्षेत्र से आप सब जानते है, ओर आपके ही सहयोग से यह साहित्यिक प्रदुषण समाप्त होगा। तो इस प्रकार के संस्थान समाचार पत्र अथवा व्यक्तियों से उचित दूरी बनाए रखे।
शुद्ध सृजन करें भले टूटा फूटा लिखें पर स्वयं का लिखें ओर नियमित लिखें सम्मान के लिए न पैसे दे न पैसे ले।
उदयपुर राज.
9950716258