जीवन है अनमोल

 



अकेलापन या संवाद हीनता 


कारण क्या है स्वयं अपना जीवन हर लेने का...


इतना हिम्मती कैसे हो जाता है इंसान


      जो अपने ही हाथों ले लेता है अपने प्राण


और हो जाता है बेजान...


         खुद अपने में ही हो गए हैं हम कैद


  अपनी ही खींची लकीरों से....


           ना तो खुद आगे बढ़ते हैं


   और ना ही किसी को शामिल करते है


          उन दायरों में....


सिमटे रहना अपने दायरों में


     बढ़ा देता है अकेलापन...


होगी जब ना किसी से मन की बात


    कैसे जान पाएगा इंसान 


दूसरे के दिल का हाल...


       भावनाओं के सिमटे दायरों से निकल


  कुछ रिश्ते तो ऐसे चुनना होगा


          कुछ तो ऐसे कांधे रखना होगा


कर सकें जहां हम खुल के 


        अपने दिल की बात....


भिगो सकें उसके कंधो को 


     बेझिझक, बिना डर भाव


करें अपने सुख दुख का इजहार


       छोड़ कर यह सोचना कि


           ' क्या कहेगा संसार '......


ज़ाहिर कर लें यदि हम 


       समय रहते हर जज्बात


तो फिर चाहे कितना भी हो


        दुख और तनाव.....


नहीं लेना पड़ेगा ईश्वर की अनुपम कृति मानव को 


      अपने ही हाथों अपनी अनमोल जान....


 


भारती यादव ' मेधा '


रायपुर, छत्तीसगढ 


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