सुषमा दिक्षित शुक्ला
संसार की सफलताओं का मूल मंत्र उत्कृष्ट मानसिक शक्ति ,दृढ़ संकल्प शक्ति ही है ।इसी की प्रबलता से संसार में व्यक्ति कोई भी वस्तु प्राप्त कर सकता है।
जीवन निर्माण में प्रत्येक क्षेत्र में संकल्प शक्ति को विशेष स्थान मिला है ।
संकल्प शक्ति के सहारे ही भागीरथ स्वर्ग से गंगा को धरती पर ले आये थे ,,,संकल्प शक्ति के जरिये ही पांडवो ने महाभारत युद्ध जीता ,,,।
संकल्प शक्ति की महिमा के सामने सभी शक्तियां झुक जाती हैं। हम कह सकते हैं कि संकल्प शक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति है।
हमारे जीवन में संकल्प शक्ति का बड़ा ही महत्व है। इसी से व्यक्ति के जीवन का निर्माण होता है। व्यक्ति अपने जीवन को परिवर्तन करके नया रंग भर सकता है ।निम्न स्तर से महान व्यक्ति बन सकता है ।
हम जो भी इच्छा प्रकट करते हैं वह दो प्रकार की होती है एक सामान्य इच्छा एक विशेष इच्छा।विशेष इच्छा ही जब उत्कृष्ट एवं प्रबल हो जाती है उसी को संकल्प कहते हैं ।
हम जो भी क्रिया करते हैं उसके तीन साधन हैं शरीर ,वाणी और मन ।क्रिया वाणी और शरीर में आने से पहले मन में होती है, अर्थात कर्म का प्रारंभ मानसिक ही होता है ।हम मन में बार-बार आवृत्ति करते हैं ,कि उसको ये बोलूंगा ,,,,यह कार्य करूंगा ,उसके पश्चात ही वाणी से बोलते हैं फिर से करते हैं ।
मन का ये दोहराना ही संकल्प है।
व्यक्ति का जीवन उत्कृष्ट, आदर्शमय होगा या निकृष्ट होगा यह उसकी इच्छाशक्ति ,संकल्प अथवा विचार से ही निर्धारित होता है ।
संकल्प शक्ति के माध्यम से बड़े से बड़े कार्य में समर्थ हो जाते हैं।
किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले संकल्प करना हमारी प्राचीन परंपरा रही है।
जीवन निर्माण के प्रत्येक क्षेत्र में संकल्प शक्ति का विशिष्ट स्थान है।
इच्छाएं जब बुद्धि, विचार और दृढ़ भावना द्वारा परिष्कृत हो जाती है ,तो संकल्प बन जाते हैं।
ध्येय शक्ति के लिए इच्छा की अपेक्षा संकल्प में अधिक शक्ति होती है ।
संकल्प दुर्ग के समान हो जो भयंकर प्रलोभन ,दुर्बल एवं डामाडोल हालात से भी रक्षा करता है ,और सफलता के द्वार तक पहुंचाने में मदद करता है।
एक महान विचारक ने लिखा है कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि मनुष्य की संकल्प शक्ति के आगे देवता, दनुज सभी पराजित होते आए हैं।
विचार तो अव्यक्त मन में भी प्रतीत होते हैं, किंतु प्रभावशाली नहीं होते ।
संकल्प भी एक तरह की विचार उत्पादक शक्ति है। इसलिए विशेष काम संकल्प के साथ किए जाते हैं वह प्रायः सफल होते हैं।
वैसे तो मन में उठने वाले संकल्प तीन प्रकार के होते हैं ,सात्विकसंकल्प ,राजसिक संकल्प ,तामसिक संकल्प।
यहां पर व्यक्ति स्वतंत्र होता है कि किस प्रकार के संकल्प को मन में स्थान दे,,, जो जिस प्रवृत्ति का होता है उसी तरह की संकल्प शक्ति धारण करता है, और उसी पर क्रियान्वयन करता है ।
गलत कार्यों हेतु जो अशुभ संकल्प किए जाते हैं वह समाज के लिए सदैव अहितकर होते हैं और स्वयं के लिए भी ।
इसलिए सदैव सात्विक संकल्प करना चाहिए और उन पर आगे बढ़ना चाहिए ,निश्चित ही मनोरथ पूर्ण होंगे ।
सुषमा दिक्षित शुक्ला