विकेंड-- सप्ताह का आखिरी दिन


रीना मिश्रा


बहुत लोगों के मुंह से सुनीं हूं मैं ये शब्द। बहुत लोग प्रोगाम बनाते हैं विकेंड में यह करना है, यहां घुमने जाना है, सबसे मिलना है,बाहर खाने जाना है, या पार्टी करनी है। बहुत ही आनंदित करने वाला शब्द होता है।जो आफिस जाते हैं या बिजनेस मैन हैं जिनकी जिंदगी रेलगाड़ी की तरह भागते रहती है उनके लिए यह दिन बहुत ही आनन्द का होता है।
मैं सोचती हूं कि क्या कभी यह शब्द एक औरत को भी आनंदित करती है। क्योंकि जहां तक मैं सोचती हूं सबको आफिस से छुट्टी मिल ही जाती है, कभी पार्टी भी होती है मतलब कि चेंजिंग तो हो ही जाता है लेकिन एक गृहिणी को कब छुट्टी मिलती है वो कब चेंजिंग करती है मूड का,शायद कभी नहीं। अगर वो बीमार न पड़ें तो हास्पिटल भी न जाए।हम अपने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि एक औरत के बारे में नहीं सोचते।क्या कभी किसी ने यह सोचने का प्रयास भी किया है कि एक विकेंड औरत को भी मनानी चाहिए।वो भी बाहर जाए खाना खाने अपने दोस्तों के साथ। अपनी मर्जी से अपने पसंदीदा कपड़े पहनकर मनपसंद होटल में मनपसंद खाना खाए। नहीं ऐसा नहीं होता जबसे उसकी शादी होती है पति के पसंद से रहना है, परिवार के हिसाब से रहना है और फिर बच्चों के पसंद से।इन सब में एक औरत अपनी जिंदगी जैसे भूल ही जाती है वह एक कठपुतली बनकर सबके इशारे पर नाचते रहती है। उसके लिए विकेंड भी दुखदाई ही होता है क्योंकि रोज के अपेक्षा उसे उस दिन और ज्यादा काम करना पड़ता है।
हम पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं हम महिलाओं का सम्मान उन्हीं के हाथ में है जब चाहें प्यार करें जब चाहें रार करें। मैं पूछती हूं उन औरतों से तुम सृष्टि की रचनाकार हो अगर तुम नहीं तो ये पुरुष भी नहीं फिर क्यों डरना।मेरी एक रचना है-


चलो इक नयी उड़ान भरते हैं
चलो इक नयी जहान रचते हैं
हम डरें क्यूं हम दबे क्यूं
हम जले क्यूं हम सहे क्यूं
आ उगाएं अब नया सवेरा
कोई नयी संधान करते हैं
चलो इक नयी उड़ान भरते हैं


मैं आवाज देती हूं आज की उन नारियों को जो डरी हुई हैं,सहमी हुई हैं,अब बस बहुत हो गया।हम नारी हैं इसका मतलब ये नहीं कि हमने पाप किया है अरे मैं तो कहती हूं बड़े भाग्यशाली हम हैं कि हमें यह रूप मिला है,इस बात पर हमें गर्व होना चाहिए न कि पछतावा।


उठो नारियों निंद्रा त्यागो
नव युग का निर्माण करो
अपनी क्षमता के बल पर
दुष्टों का संहार करो


बहुत हो गया रोना धोना अब अपने अधिकारों के लिए लड़ना है समाज में अपना वर्चस्व भी बनाना है और अपने परिवार को भी संभालना है।गलत करना नहीं है गलत सहना नहीं है और अब दबना भी नहीं है।
तुम्हें भी अधिकार है विकेंड मनाने का अपने तरीके से खुशियां मनाने का। 
जय हिन्द जय भारत।
  रीना मिश्रा, देवरिया, उत्तर प्रदेश


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