अरी व्याधि की सूत्र धारिणी-
अरी आधि मधुमय अभिशाप।
हृदय गगन में धूमकेतु- सी,
पुण्य सृष्टि में सुंदर पाप।।(कामायनी )
साहित्य का जितना अधिक नुकसान इन डाक्टर नामधारी प्राणियों ने किया है,उतना किसी ने नहीं ।आजकल डिग्रियां बिकती हैं ।खरीददार की गांठ में दाम होना चाहिए ।
शोध प्रबंध देख लिए जाएँ ,तो गूगल बाबा की भोंडी नकल के सिवाय कुछ नहीं निकलेंगे।डिग्री मिलने के बाद ये साहित्य का सत्यानाश करने को अधिकृत हो जाते हैं ।न इनके पास मौलिक चिन्तन है और न सूक्ष्म दृष्टि ।पैसा है।किताबें छपती रहती हैं और धरती के कूडे में अभिवृद्धि होती रहती है।
कई पुस्तकों का मुखपृष्ठ और पीठ पृष्ठ इनकी उसी गौरव गाथा से भरा रहता है ,जैसे चारणकाल में दुमचोर राजाओं की वीरता से आख्यान काव्य ।इतनी डिग्रियां, इतनी उपाधियां,इतने पुरस्कार -खानदानी विरुदावली कि शर्म को शर्म आ जाए,पर इन बेहयाओं को नहीं आती।मैं बेशरम का फूल हूँ ,मैं अरण्ड वृक्ष हूँ ।देखो मेरा बल देखो।अखिल भारतीय जूता संघ ने मुझे जूता शिरोमणि उपाधि दी।सब्जी वालों ने कदुवा-चंद्र,कबाडी संघ ने अंतरराष्ट्रीय टायरभूषण-----------।चक्कर आ गया न?
बिहार में तो पी-एच •डी और और डी •लिट् •भी मानद मिल जाती है।पैसा दो।साहित्य सबसे सरल चारा है।चर जाओ।फिर किसकी दम तुम्हारी योग्यता पर प्रश्न उठाए?तुम्हारे पाले मुस्टंडे उस पर टूट पड़ेंगे ।शरीफ तो बेचारा डर कर अपनी टिप्पणी ही डिलीट करता है।
क्या खूब लिखा खत्री जी ने-
गुरुर्ब्रह्मा नव रूप में, गुरुर्एप अवतार।
ऑनलाइन पढ़ लीजिए, डिग्री बेड़ा पार॥
गुरु महत्व अब ना रहा, ऋषि वाणी बेकार।
घर बैठे डिग्री मिले, तकनीक चमत्कार॥
पुस्तक क्यों छपवा रहे, आज पढ़ेगा कौन।
नेता शिक्षा बांटते, शिक्षाविद हैं मौन॥
मात-पिता भी चाहते, बस डिग्री मिल जाय।
बच्चे घर बैठे रहें, श्रम को कौन गंवाय॥
ऐसे लोग अनेक हैं, बच्चे दसवीं फेल।
कोरोना परताप से, डिग्री पाई खेल॥
ना संस्था ना लैब हैं, तकनीकी विद्वान।
सब डिग्री हैं पा रहे, भरा ज्ञान ही ज्ञान॥
गुरु शिक्षा संस्थान की, परिभाषा नव रूप।
डिग्री धन दे लीजिए, बनता रूप अनूप॥
(डा.ए.डी.खत्री)