तुम
जैसे कोई
मीठा लम्हा !
शाश्वत ताजगी
से
भरा हुआ!
दिव्य स्मिति
में
लिपटा हुआ!
आत्मा
को
ब्रह्मानंद की अनुभूति!
में
डुबोता हुआ!!
यादों की खूँटियों
में
टंँगा हुआ!
जिसमें भरा है
मेरे
जीवन का आकाश!
जिसे जब चाहती हूँ
मैं
अपने हृदय की जमीं
पर
झुका लेती हूँ!
और
भर लेती हूँ
अपने आगोश में!!
प्राप्ति :
*परमानंद* की!!!
डॉ पंकजवासिनी
असिस्टेंट प्रोफेसर
भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय