मेरे उलझे सपने

 


फिर से खुल जाएंगी गुच्छी
मेरे उलझे सपनों की
फिर मिल जाएंगी मंजिल
 आड़े-टेढ़े  रस्तों की,


 तोड़ूंगी अब सारे बंधन
सामाजिक अपवादों के
ओढूंगी अब चूनर केसरी
 मैं अपनी आजादी की,


आत्मसमर्पण बहुत हो चुका 
आत्मज्ञान अब पाना है
अपने सम्मान की रक्षा कर
जीवन को सुखद बनाना है,


 छोडूंगी अब हर आडम्बर
झूठे रिश्ते नातों का
जो मतलब से टूटे,बंधते
ऐसे कच्चे धागो का,


मन की लहरों पर तेरूंगी
ले भावों और विचारों को
फिर से मिल जाएगा साहिल
नौका और पतवारों को,


ह्रदय पटल पर अंकित होगी
 छवि स्वछंद विचारों की
अब होगी वर्षा केवल
स्वर्णिम स्वप्नों में सितारों की।।


                        (अनामिका लेखिका )
                               उत्तर प्रदेश


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