दशरथ नृपति लाड़ला , सीता पति श्रीराम
कौशल्या कोख से जन्मा,विष्णु महा अवतार
राजधर्म पालन किया , भार्या का कर त्याग
माता पिता छोड़ दिए , राज्य का परित्याग
शिव धनुष को तोड़ के,रखी जनक की लाज
स्वयंवर को जीत के , मुकम्मल किया काज
कैकेयी त्रिया हठ में , पिता हुए मजबूर
भरत को था राज मिला ,राम घर से सुदूर
पिता वचन अनुपालना ,काटा था वनवास
राजपाट को छोड़ दिया, किया नगर प्रवास
द्वेष भाव सब भूल के,मधुरिम भरत मिलाप
न्याय धर्म की शिक्षा दे, कोई न पश्चाताप
सीता लखन साथ लिया , भटके नंगे पांव
दर बदर भटकते रहे, मिली ना ठण्डी छांव
ऋषियों को मुक्त किया,किया दानव विनाश
राक्षस राज खत्म किया ,राम राज का वास
छल मायावी जाल से , धारा तपस्वी भेष
सीता अनाहरण किया , लंकापति लंकेश
हनुमान, सुग्रीव साथ से ,लंका किया प्रहार
सीता को छुड़वा लिया , लंकेश्वर संहार
प्रजा को संतान माना, राम राज्य शासन
राज धर्म की रक्षा में, सीता को निष्कासन
पुत्र, पति, पिता भेष में , दिया यही संदेश
प्रजाहित है सर्वोपरि ,सिद्धांत यही हमेश
सुखविंद्र राम याचना , आरती सुबह शाम
त्न्याय ,त्याग प्रतिमूर्ति,स्थापित है आयाम
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)