"जिनगी खाली पन्ना बा
न कोरा बा---
ना भरल बा,
बुझाते नइखे कि
कब कइसे का हो गइल
आ लिखे के चहनी त
आँखी के अलोप हो गइल
अन्हरिया राती में भी त
भोर के किरकिट
सन अंजोर हो गइल
आ,उठे जब चहनी
त मनवा थोर हो गइल
गोडे- हाथें अब त
आस पियराइल बा
मनवे के बात अब
मन में समाइल बा
कइसे कहीं कि
जिनगी में उछाह भरल बा
जिनगी करिया आ
मन उजास भरल बा
कुकूके कोइलर कि
पपीहा तरसावेला
अमवा के बाग में
निमिया रोपायिल बा
लिखे चल संगे कि
जिनगी लिखल जाव
मन के विशेख
अब रूप देहल जाव
बहुत तरसल जिनगी
अब तनी हँसे द
रोए ना पाए अखियां
तनी लोर पोंछे द,,,,,,
★★★★★★
डा. मधुबाला श्रीवास्तव