गुरु ब्रह्म रुप गुरु बिष्णु रूप
गुरु ओंकार है बीज रूप
हे बीत राग परमेश्वर तुम
काटो तम उर के बन्धन अब
दे ज्ञान चँक्षु हे सर्व रुप।
गुरु ब्रह्म..................।
अखिलेश्वर हो सगरे जग के
करते पावन जन जन के उर
दिव्यवाणी से आलोकित कर
गढ़ते जग का पावन स्वरूप
गुरु...........................।
अध्यात्म रूप के परिचायक
अन्तःमन के तम हारक हो
हे करुणा लय दुखहारक तुम
प्रतिपालक हो पथ धारक तुम
हो मूर्त रूप पथ दर्शन तुम
गुरु बह्म.....................।
हे दानशील हे निराकार
संघार करो मन के कलुष
राग द्वेष सब मिट जाये
जल जाये हृदय में ज्ञान ज्योति
गुरु ब्रह्म......................।
मोह विकार मिटे मन से
भवविषम ताप त्रय जग के सब
अज्ञानता जग से मिट जाये
प्रज्जवलित हो जाये ज्योति पुनीत
गुरु ब्रह्म........................।
मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर