गीतिका छंद 


साज-लय पर जिन्दगी को,भी सजाओ तो सही
साधना  के  द्वार जाकर,  मुक्ति  पाओ तो सही


हो सके तो राह अपना, हम बना लें भक्ति का ।
राह जो भटके हुए हैं , यह  दिखा दें मुक्ति का ।


एक  हीं तो बार मिलती , है हमारी जिन्दगी ।
इस लिए हम सब करें इस, जिन्दगी की बंदगी ।


भूलकर भी भूल कोई  ,भी करें न हम कभी ।
राह भी सद्धर्म पर हीं, चल दिखाएं हम सभी ।


भटकते हैं आज हम क्यों,मोह के भ्रम जाल में 
पाल कर व्याधि व्यथाएँ, जी रहे किस हाल में ।


गीत भी संगीत भी हो, राग भी  हो  रागिनी,
तान मन वीणा बजाएँ, गीत गाएँ  मधुबनी ।


प्रतिला श्री 'तिवारी'


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