साज-लय पर जिन्दगी को,भी सजाओ तो सही
साधना के द्वार जाकर, मुक्ति पाओ तो सही
हो सके तो राह अपना, हम बना लें भक्ति का ।
राह जो भटके हुए हैं , यह दिखा दें मुक्ति का ।
एक हीं तो बार मिलती , है हमारी जिन्दगी ।
इस लिए हम सब करें इस, जिन्दगी की बंदगी ।
भूलकर भी भूल कोई ,भी करें न हम कभी ।
राह भी सद्धर्म पर हीं, चल दिखाएं हम सभी ।
भटकते हैं आज हम क्यों,मोह के भ्रम जाल में
पाल कर व्याधि व्यथाएँ, जी रहे किस हाल में ।
गीत भी संगीत भी हो, राग भी हो रागिनी,
तान मन वीणा बजाएँ, गीत गाएँ मधुबनी ।
प्रतिला श्री 'तिवारी'