गीतिका

(आधार छंद - आल्हा)



भक्ति सुधा रस भरा ह्रदय में,क्यों मन मूरख चखता नाय,
अंतकाल जब आन पड़े तो,मानव काहे फिर पछताय।
-2
मोल समझ ले आज समय का,मोह-लोभ का करना त्याग,
अब न जपे तू देर करे क्यों,जीवन नदिया बहती जाय।
-3
हीरा माणिक जनम तुम्हारा,जीवन के ये पल अनमोल,
समय बीत जाएगा तब तू,हाथ मलेगा फिर पछताय।
-4
जो भी करना करो आज से,चलो ईश के अब दरबार,
चला चली जब हो दुनिया से, तन-मन सब होता असहाय।
-5
काल तुम्हारे पीछे पीछे, चलता पकड़ तुम्हारा हाथ,
जाना होगा वहीं एक दिन, प्यारे काल जहाँ  ले जाय । 
-------- सुनीता द्विवेदी


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