अच्छा सुनने पर शक करते हैं,
लेकिन बुरा सुनने पर तुरंत
यकीन कर लेते हैं,
कैसे कैसे लोग हैं यहां पर
छीनकर होंठों से हंसी आंखों में नमी
दे दिया करते हैं
सिमटना चाहो खुद में तो
पीछे से
आवाज दिया करते हैं
करके होशियारी
एहसासों का कत्ल कर दिया करते हैं
सच को झुठलाने से कुछ नहीं होता है
हर अंधेरे के बाद उजाला ही फैलता है
ऐ नियति...
तू कब तक खामोशी से देखेगी ,कब फरेब की
दुल्हन का घूंघट खोलेगी
हर पल, हर लम्हा,हर क्षण पशेमां है जिंदगी
कब रुख हवाओं का सच्चाई की दिशा की
और मोड़ेगी
किरण झा
✍🏼✍🏼 स्वरचित