बालक ध्रुव----


विधा-चउपाई
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दुइ    उत्तानपाद   के  रानी।
बड़ सुनीति सुरूचि महरानी।।
राजा अति सुरूचि के  जाने।
बड़ सुनीति के नाहीं माने।।१।।


कारन एकर  एतने रहे।
सब सुनीती के बाँझिन कहे।
एगो सुरूचि के रहे बेटा।
उत्तम नाम रखल ओ केटा।।२।।


राजा दुख सुनीति  के देलें।
निकालि घर से बन पठवेलें।।
रानी के ध्रुव भइलें बेटा।
माथे बान्हि घुमेलें फेटा।।३।।


माई बन में लकड़ी बीनें।
लोग सभे उनका से कीने।।
पाँच बरस के ध्रुव जब भइलें।
एक दिन घूमि महल म गइलें।।४।।


राजा के गोदी जा बइठें।
सुरूचि देखि क कनवें अइठें।।
तोर  रहित  राजा के कोरा।
जनम रहित तब हमसे तोरा।।५।।


मारत रानी ध्रुव के भगावें।
रोवत ध्रुव  माई लग आवें।।
सगरो हाल कहेले उहवाँ।
बोल बाप हमार हो कहवाँ।।६।।


श्री हरि हवें पिता जी सबके।
उनकर गोद न केहू हबके।।
कहलें ध्रुव ऊ मिलिहें कहवाँ।
माई कहली सुमिरन तहवाँ।।७।।


चलि दिहलें ध्रुव हरि से मीले।
नाँव जपत त्रिलोक ले हीले।।
नारद आके बड़ समुझावें।
श्री हरि श्री हरि भजन सुनावें।।८।।


ध्रुव तनिको टसमस ना होखें।
तूँ श्री हरि ना मन में घोखें।।
अन्तदाव में भगवन अइनीं।
बालक ध्रुव के गोद उठइनीं।।९।।


कहनी बेटा हठ अब नाहीं।
 हमरा से कह का अब चाहीं।।
चाहीं हमके बड़ सिङासन।
ना होखे दुसरा के आसन।।१०।।


प्रभु बर दिहनीं होइह तारा।
अचल-अडिग कोना भंडारा।।
तबसे ध्रुव अमर होइ गइलें।
सबसे बड़हन गोदी पइलें।।११।।


**माया शर्मा


पंचदेवरी,गोपालगंज(बिहार)**


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