""रौनक,,
क्या हो रहा है यह ??
पार्टी चल रही है,,और क्या???
आज हमारी शादी की सालगिरह!!!और मैं चुपचाप कोने में बैठी हूँ और तुम इन तितलियों के सँग!!!छी,,,,,कहते हुए भी शर्म आ रही है,इतने कम कपड़ों में ???ग्लास थामे ??छी छी,,,,
तो क्या चाहती हो ???बोलो,,,,तुम्हारी तरह पुराने जमाने की संस्कारी बहु बन कर मैं भी बैठ जाऊँ ??अरे ,यही तो है बड़े लोगो की पहचान!!!ऊँची सोसाइटी!!!
खैर छोड़ो,,,तुम न समझोगी!! संस्कार को मारो गोली और इंज्वाय करो,,वरना भाड़ में जाओ !!!
छन्न !!!!!कुछ टूट गया मन के भीतर,,,,,,
आज वही पार्टी,,,वही रौनक,,,वही कम कपड़ों की नुमाईश,,,,वही संस्कार,,,,
वंदना,,,,,,
सब तुम्हें देख रहे हैं,,,
कपडे सम्भालो,,,ज्यादा पी ली हो,,,,अरे !!!गिर जाओगी,,,,,
अरे रौनक यार,,,
बोर मत करो,,इंज्वाय करो,,,
ऊँची सोसाइटी,,,,ऊँचे लोग,,,,,ऊँची पहचान,,,,
अरे!!यही तो है हमारी पहचान!!! है न ???
नहीं समझे ??? नहीं समझोगे ,,,,तुम तो बहुत ही ओछी मानसिकता के हो,,,अरे नहीं समझे तो भाड़ में जाओ,,, मूड खराब मत करो,,,,,,,,,,
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© डॉ मधुबाला सिन्हा
वाराणसी
आधुनिकता