तुम्हें सोंच कर

 



" जो बात मैंने कही नहीं
सुन ली तुमने वह भी
बरसों पहले की थी जो
सफ़र----
आज भी वहीं खड़ी
साथ तेरे
जज़्बात तेरे
लिए आज भी
सफ़र में हूँ


आने को तो 
 आ गयी थी मैं
पर रुकी आज भी मोड़ वही
हाथ छुड़ा के चले गए थे
साया लिपटा आज भी वहीं
शुष्क को जब उष्ण बनाया
ले जज़्बात वहीं खड़ी
आस पली एक मुद्दत से
सांस थामे वहीं अड़ी


खबर तुझे क्या होगी कभी
करती तेरा इंतजार वहीं
फैलाये बाँहें मैं अपनी
लिपटी रहूँगी
तेरे साये से
जब आओगे
चूम लोगे मेरे अश्कों को
 यही सोचती रहती हूँ
मैं रात भर
जीती रहती हूँ
तुझे सोच कर"
*****
डॉ मधुबाला सिन्हा
अंतरराष्ट्रीय सचिव-
'विश्व साहित्य सेवा संस्थान'
मोतिहारी,पूर्वी चंपारण
9470234816


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