" तुम आए नहीं
क्यों रात सखी
अंखिया तुमको तो
खोजत है
पपीहा तडपावे
नींद उड़ावे
कोयल बोली सुनी
मन है सहमे
काहे पिया -मिलन
तरसावत है
एक आस बनी
तुम आवन के
रहिया अखियां
ताकत सजनी
दूर देश बसे पिया
आन मिलो
अब मन व्याकुल
सतावत है
किस ओर गए सखी
साजन अब
मन हुलस-हुलस
बुलावत है
सेजिया टकटोरी
बहियाँ लिपटी
अब काहे सखी
तड़पावत है
निर्मोही पिया
अब खेल रहे
सौतिन सँगवा
लुभावत है
काहे अंखियन
लोर बहे सखिया
काहे निंदिया मातल
सुहावत है
दादुर,मेढ़क बोली
निरखे अन्हरिया
चनवा जोत
कुहुकावत है
अब झांपी मुख
चकोर भए
नाहीं स्वाति बून्द
तकावत है,,,,,,,,
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डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी
18 जून 2020
तुम आए नहीं