तुम्हारी विरासत मेरा सरमाया है
मयखाने में मय का जाम लगाया है
होठों पर हसीं तेरा नाम आया है
भूले बिसरे थे जो हम नाम तुम्हारा
दर्द ए दिल ने फिर याद करवाया है
दिल दीवाना सदियों से है तुम्हारा
तुम मेरे विरान हृदय का साया है
भावनाओं में बहक गए हैं इस कदर
आज फिर से प्रेम का तूफां आया है
जमाने वालों ने हमें मिलने न दिया
पग पग पर पहरेदार जो बैठाया है
जज्बातों के मारे मारे हैं फिरते
यादों ने सारी रात भर जगाया है
सुखविंद्र तन्हाई में तन्हां अकेला है
तुम्हारी विरासत मेरा सरमाया है
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चीन खेलता खेल घिनौना है
हर चीज चाइना की सस्ती
पर मंहगा बहुत कोरोना है।
जाने इसके नाम पे यारो
हमको कब तक रोना है.....!!
चाइना चैन से नहीं रहने दे
कोरोना से बाँधा हर कोना है
विश्व शक्ति बनने के चक्र में
कब तक चीनी जहर ढोना है
बेशक नाम के वो चीनी हो
नफरत भरा कोना कोना है
दिल कड़वे,शक्ले हों भोली
पीठ पीछे खंजर चिभोना है
मानवता का दम तोड़ दिया
समझते सबको खिलौना है
फूल सी जिन्दगियों को रौंद
बीज काँटों का सदा बोना है
विश्वासघात सदैव रहें करते
चाहे जीवन से हाथ धोना है
सुखविन्द्र समझा नहीं पाया
चीन खेलता खेल घिनौना है
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रिश्तों में अपनापन हो
सार्थक सुन्दर स्वप्न हो
रिश्तों में अपनापन हो
सुदूर रहें चाहे पास रहें
दिल के सदा खास रहें
पारदर्शक सा दर्पण हो
रिश्तों में अपनापन हो
कटुता का ना वास हो
प्रभुता का सहवास हो
परस्पर सब सज्जन हों
रिश्तों में अपनापन हो
कभी न कोई खट्टास हो
मधु सी भरी मिठास हो
माधुर्य मन में वन्दन हो
रिश्तों में अपनापन हो
आदर भाव सत्कार हों
संस्कृति एवं संस्कार हों
मानवता का अर्जन हो
रिश्तों में अपनापन हो
ईर्ष्या,लोभ का लोप हो
क्रोध और न प्रकोप हो
सन्तोष सदैव सृजन हो
रिश्तों में अपनापन हो
प्रेम का महासागर हो
गागर में भरे सागर हो
संबंधों में न निर्जन हो
रिश्तों में अपनापन हो
सुखविन्द्र न तनाव हो
रिश्तों में न खिचांव हो
अर्पण और समर्पण हो
रिश्तों में.अपनापन हो
सार्थक सुन्दर स्वप्न हो
रिश्तों में अपनापन हो
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)