साहित्यिक पंडानामा:७९५


भूपेन्द्र दीक्षित
आप सबके  स्नेहऔर पंडानामा श्रृंखला का असर दिखाई देने लगा है।नामधारी लोग पहली दफे पत्नियों  के साथ दिखने लगे हैं और पारिवारिक छवि बनाने का प्रयास करने लगे हैं।
साहित्यिक आवारागर्दियां नियंत्रित हों और मंचों का माहौल शालीन और सभ्य बने, हमारे साहित्यिक पंडा नामा का पुनीत लक्ष्य है।
देर आयद दुरुस्त आयद।अभी सुधर जाएं,अन्यथा यह रंगीन गिरावट कहीं का नहीं छोड़ती।ये हैट वाली,कोटवाली,पैंट और शर्ट वाली,गाने और बजाने वाली साथ नहीं देतीं।साथ अपनी ही बुढ़िया देती है।
तो आज खुशियों वाली शहनाई मेरे कान में बज रही है। बशर्ते यह लोगों को भरमाने का नाटक न हो। काका ने क्या खूब कहा था-
 कैसे जीत सकेंगे उनसे करके झगड़ा,
अपनी चिमटी से उनका चिमटा है तगड़ा।


मन्त्री, सन्तरी, विधायक सभी शब्द पुल्लिंग,
तो भारत सरकार फिर क्यों है स्त्रीलिंग?


क्यों है स्त्रीलिंग, समझ में बात ना आती,
नब्बे प्रतिशत मर्द, किन्तु संसद कहलाती।


काका बस में चढ़े हो गए नर से नारी,
कण्डक्टर ने कहा आ गई एक सवारी।


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