भूपेन्द्र दीक्षित
काका ने लिखा था-
मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,
ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।
झूठों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,
जय बोलो बेईमान की !
प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,
टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।
नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,
जय बोल बेईमान की !
महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेस
पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।
‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की,
जय बोल बेईमान की !
डाक-तार संचार का ‘प्रगति’ कर रहा काम,
कछुआ की गति चल रहे, लैटर-टेलीग्राम।
धीरे काम करो, तब होगी उन्नति हिंदुस्तान की,
जय बोलो बेईमान की !
दिन-दिन बढ़ता जा रहा काले घन का जोर,
डार-डार सरकार है, पात-पात करचोर।
नहीं सफल होने दें कोई युक्ति चचा ईमान की,
जय बोलो बेईमान की !
क्या आजादी के इतने वर्षों से वैसे ही हालात नहीं हैं? आखिर सुरसा की तरह बढ़ती जनसंख्या सारे संसाधन निगल रही है,इस पर किसी नेता का कोई विजन है? आरक्षण का लाभ या सरकारी योजनाओं का लाभ दो बच्चों तक सीमित क्यों नहीं?एक परिवार के दस दस लोगों को आरक्षण क्यों?ये बोल्ड निर्णय कौन लेगा?जनसंख्या नियंत्रण सिर्फ हिंदू पर ही क्यों?